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तत्वार्थसूत्रकी उत्पत्ति
उमास्वातिक तत्त्वार्थमूत्र पर 'तत्त्वरत्नप्रदीपिका' नामकी एक कनडी टीका बालचन्द्र मुनिकी बनाई हुई है, जिसे 'तत्त्वार्थ-नापर्य-वृनि' भी कहते हैं। इस टीका की प्रस्तावनामें नत्वार्थसूत्रकी उत्पत्ति जिम प्रकारसे बतलाई है उसका संक्षिप्त सार इस प्रकार है :- "मौराष्ट्र देशके मध्य ऊर्जयन्तगिरिके निकट गिरिनगर (जूनागढ़) नामके पतनमें आसन्न भव्य स्वहितार्थी, द्विजकुलोत्पन्न, श्वेताम्बरभक्त ऐमा सिद्धय्य' नामका एक विद्वान् श्वेताम्बर मतके अनुकूल सकल शास्त्रका जाननेवाला था। उसने 'दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः' यह एक मूत्र बनाया और उस एक पाटिये पर लिव छोड़ा। एक समय चर्यार्थ श्रीगृद्धपिच्छाचार्य 'उमास्वाति' नामके धारक मुनिवर वहाँ पर आये और उन्होंने आहार लेनेके पश्चात् पाटियेको देखकर उसमे उक्त सूत्रके पहले 'सम्यक्' शब्द जोड़ दिया। जब वह (सिद्धय्य) विद्वान् बाहरसे अपने घर आया और उसने पाटिये पर 'सम्यक्' शब्द लगा देखा तो उसने प्रसन्न होकर अपनी मातासे पूछा कि, किस महानुभावने यह शब्द लिखा है । माताने उत्तर दिया कि एक महानुभाव निर्ग्रन्थाचार्यने यह बनाया है । इस पर वह गिरि और अरण्यको ढूढता हुआ उनके आश्रममें पहुँचा ओर भक्तिभावसे नम्रीभूत हो कर उक्त मुनि
* यह टीका पाराके जैनसिद्धान्त-भवनमें देवनागरी अक्षरों में मौजूद है।