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________________ १४ जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश परमात्मपद कैसे प्राप्त हो सकता है इसका अनेक प्रकारसे निदश किया है। इस ग्रन्थके कितने ही वाक्योंका अनुसरण पूज्यपाद प्राचार्यने,अपने 'समाधितंत्र' ग्रन्थ में किया है। इन दसणपाहुडसे मोक्खपाहुड तकके छह प्राभृत ग्रन्थोंपर श्रुतसागरसूरिकी टीका भी उपलब्ध है, जो कि माणिकचन्द-ग्रंथमालाके षट्प्राभूतादिसंग्रहमें मूलग्रंथोंके साथ प्रकाशित हो चुकी है। १२. लिंगपाहुड-यह द्वाविंशति (२२) गाथात्मक ग्रंथ है। इसमें श्रमणलिङ्गको लक्ष्यमें लेकर उन आचरणोंका उल्लेख किया गया है जो इस लिङ्गधारी जैनसाधुके लिये निषिद्ध हैं और साथ ही उन निपिद्ध आचरणोंका फल भी नरकवासादि बतलाया गया है तथा उन निषिद्धाचारमें प्रवृत्ति करनेवाले लिङ्गभावसे शून्य साधुनोंको श्रमरण नहीं माना है-तिर्यञ्चयोनि बतलाया है। १३. शीलपाहुड-यह ४० गाथाओंका ग्रन्थ है। इसमें शीलकाविषयोंसे विरागका महत्व ख्यापित किया है और उसे मोक्ष-सोपान बतलाया है। साथ ही जीवदया, इन्द्रियदमन, सत्य, प्रचौर्य, ब्रह्मचर्य, संतोप, सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और तपको शीलका परिवार घोषित किया है। १४. रयणसार-इस ग्रंथका विषय गृहस्थों तथा मुनियोंके रत्नत्रयधर्म-सम्बन्धी कुछ विशेष कर्तव्योंका उपदेश अथवा उनकी उचित-अनुचित प्रवृत्तियोंका कुछ निर्देश है। परन्तु यह ग्रंथ अभी बहुत कुछ संदिग्ध स्थितिमें स्थित है--जिस रूपमें अपनेको प्राप्त हुआ है उसपरसे न तो इसकी ठीक पद्यसंख्या ही निर्धारित की जा सकती है और न इसके पूर्णत: मूलरूपका ही कोई पता चलता है । माणिकचन्द-ग्रंथमालाके षट्प्राभृतादि-संग्रहमें इस ग्रंथकी पद्यसंख्या १६७ दी है। साथ ही फुटनोट्समें सम्पादकने जिन दो प्रतियों ( क-ख) का तुलनात्मक उल्लेख किया है उसपरसे दोनों प्रतियों में पद्योंकी संख्या बहुत कुछ विभिन्न (हीनाधिक) पाई जाती है और उनका कितना ही क्रमभेद भी उपलब्ध है-सम्पादनमें जो पद्य जिस प्रतिमें पाये गये उन सबको ही बिना जांचके यथेच्छ क्रमके साथ ले लिया गया है । देहलीके पंचायती मन्दिरकी प्रतिपरसे जब मैंने इस मा० ग्र० संस्करणकी तुलना की तो मालूम हुआ कि उसमें इस ग्रंथकी १२ गाथाएँ नं० ८, ३४, ३७, ४६, ५५, ५६, ६३, ६६, ६७,
SR No.010050
Book TitleJain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1956
Total Pages280
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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