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जैन जगत् के उज्ज्वल तारे
मेहतरनी के द्वारा उन कम्बला का उठाया जाना; श्रादि बातों भे राजा के सिर को मन्दा कर दिया । राजा ने शालिभद्र से मिलने की मन में ठानी । सेटजी को बुलाया गया। परन्तु भद्रा ने,-" मेरा पुत्र किसी से मिलता-जुलता नहीं है। राजा चाहे, तो मैं उपस्थित हो सकती हूँ।--यादि बात कह कर, सन्देश-वाहक को टाल दिया। यह जान कर, राजा स्वयं ही शालिभद्र से मिलने के लिये आये। भद्रा ने उन का उचित स्वागत किया।
सेठ के महल को देखते ही, राजा के अचरज का ठिकाना न रहा । पने जड़े हुए फर्श में, पानी भरा हुआ समझ कर, अपनी अँगूठी राजा ने वहां डाल दी । परन्तु पानी तो वहां था नहीं। आवाज़ करके वह उछल कर कहीं जा गिरी। उसे ढूँढने के लिए उन्होंने उधेड़-बुन मचाई । भद्रा ने यह जानकर, तुरन्त ही दासियों के द्वारा, बहुमूल्य हीरों की अँगूठियों का एक थाल भरवा कर मँगयाया; और, उसे राजा की भेंट कर दिया। यह देखकर, राजा सिटपिटा-गये। ___ भद्रा ने राजा को उचित श्रासन पर विठा कर, पुत्र को ऊपर से बुलाया। सेठजी ने ऊपर ही से उत्तर दे दिया, कि"मां, यदि 'श्रेणिक' नाम की कोई वस्तु आई है, तो तुम खुद ही उसे ले लो। मोल-तौल में मैं तो कुछ समझता भी नहीं हूँ।" इस पर माता ने फिर कहा, "नहीं, वेटा!'श्रेणिक' खरीद की कोई चीज़ नहीं है। यह तो अपने नरेश का नाम है। ज़रा, नीचे आकर मिल इनसे अवश्य लो।" शालिभद्र का, यह सुनकर, माथा ठनक उठा । पर आज्ञा माता की थी। वे उसे टालना भी नहीं चाहते थे। अपनी करणी को भी,
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