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पुण्डरीक-कुण्डरीक तक, अति ही कठोर-तम और कप्ट-पूर्ण जीवन व्यतीत करने के लिए, काल के विकराल पंजों में पटक, सीधे सातवें नर्क को भेज दिया। ___इस के विपरीत, पुण्डरीक मुनि भी पूरे तीन दिनों में, स्थावर मुनि के चरणों में जा पहुँचे। दुबारा, वहाँ उन्होंने फिर से, ऋषिगज के हाथों. महावतों को धारण किया। तेले के पारण के दिन, जैसा भी मूखा-रखा भोजन उन्हें मिला, उसे हृदय से ग्रहण उन्होंने किया । जव कुछ काल के अनन्तर वे अस्वस्थ हुए. संथारा उन्होंने ले लिया। यूँ, काल पूर्ण करके, तैतीस सागर पर्यन्त, परम सुखमय जीवन विताने, भार. उस के पश्चात् एक भव ही के बाद मोन-धाम को सिधारने के हेतु. सर्वार्थ सिद्ध नामक स्वर्ग में वे जा विराजे। ___ इससे निर्विवाद-रूपेण सिद्ध हो गया,कि संसार में सारे अ..' नयों का एक मात्र कारण,कवल रमनन्द्रिय ही है। श्रतः प्रत्यक . मनुष्य का प्रथम और प्रधान कर्तव्य है, कि वह अपने बनते बल इस की अधीनता से छूटने का उपाय सदा सोचता रहे।
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