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स्कन्धाचार्य
सौ निन्यानवे अन्य वीर योधार्थी के साथ कपट मुनि का प धारण कर.. श्राप के उद्यान में था उत्तरा है। वह इस बात की रोह में है, कि समय अनुकूल देख कर आप के राज्य पर धावा बोल दिया जाय। बड़े भयंकर शास्त्र भी उनके साथ हैं, जो उनके पढ़ाब के पड़ीस ही भूमि में गढ़े पड़े हैं। मुझे श्राज ऐसा न पड़ा है । हाथ कंगन को श्रारसी ही क्या ? यदि महाराज को कोई ऐतराज़ न हो, तो चल कर मामले को जरा दो श्राँखों से देख ले ! पालक की स्वामिभक्ति भरी दलील महाराज को माननी पड़ी । वे उसके साथ सवार हो लिये ।
चल मौके पर थाये । पालक की बात सोलह थाना सत्य निकली। यह देखकर महाराज बड़े ही ढंग हो रहे । महाराज और उन के अन्य साथियों ने पालक की पेटभर प्रशंसा की । कुमार को कठिन से कठिन दण्ड देने की राजाना हुई । दण्ड का निर्णय तथा सर्वाधिकार पालक की इच्छा पर छोड़ दिया गया। कुटनीतिकुशल पालक की श्रव तो पूरी बन पड़ी । पालक ने श्रपने अपमान का बदला, एक गुना नहीं, दस गुना नहीं, वरन पूरा-पूरा सैकड़ों गुना चुका लेना चाहा । पुरोहित के साथ महाराज वस्ती की ओर था गये ।
श्राते ही पुरोहित ने कुछ कुशल कारीगरों को अपने साथ लिया। बस्ती के बाहर एकान्त स्थान उसने देखा । यहाँ पनी इच्छा के अनुसार, एक विशालकाय, नर-संहारक कोल्हू की रचना उसने करवाई । तव नारी-बारी से स्कन्धाचार्य के चार सौ श्रानवे साथ में श्राये हुए मुनियों को, बड़ी ही निर्दयतापूर्वक, उस में डाल-डाल कर, गन्ने की भाँति, पिलवा दिया गया । श्रव स्कन्धाचार्य और उनके एक छोटे शिष्य मात्र रह
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