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इलायची कुमार एक नट-पुत्री के पीछे, अपने, उत्तम कुल, अतुलनीय वैभव
और उत्तम मानुप जन्म को जैसे भी वरवाद उन्होंने कर दिया था , रह-रह कर सब बातें उन के सामने आने लगी । आत्म-धिकार के द्वारा सब का पूरा-पूरा प्रायश्चित उन्होंने उस समय किया। इस भाव-शुद्धि के हृदय-देश में प्रवेश करते ही, कैवल्य-ज्ञान का प्रदीप्त प्रकाश वहाँ फैल गया। यूँ, नट का खेल ही समाप्त नहीं हुआ, वरन् संसार के आवागमन के नाना-विध रूप धारण करने का खेल भी, कुमार के लिए सदा को समाप्त हो गया । उसी पल, भव-वन्धन की पाँश उन्होंने अपने गले से काट फेंकी । और मुक्ति के मार्ग में प्रवेश कर, अनादि एवं अनन्त सुखों के आवास , परमधाम को वे जा पहुंचे।
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