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इलायची-कुमार
उन्हों ने स्वीकार की । श्रोर, साथ ही बिना पैसा लिये दिये ही उस की कन्या को अपने पुत्र के हाथ दे देने की प्रार्थना भी । नट ने स्वीकार तो उसे कर लिया। पर एक शर्त साथ में लगा दी । शर्त थी- "कुमार अपने प्यारे परिवार श्रीर कुंवर के वैभव को चाट के बटोही की भाँति छोड़ दें। वे हमारे ही साथ, हमारे वेप में पूरे बारह वर्ष रह कर, नट-विद्या में निपुरा बने। यदि कुमार इतना स्वार्थ त्याग करने को तैयार हैं, ता अन्त में मेरी पुत्री को, खुशी-खुशी में उन्हें दे दूँगा ।
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सेठ का सिर उनक पढ़ा। उलटे पैरों लौट कर कुमार के पास श्राये । नट की मनशा की पहली को कुमार के सामने उन्हीं ने रक्खा | कुमार तो पैरों पर खड़े ही थे । नट- कुमारी की प्राप्ति में, वे सर्वस्व तक को होम देने के लिए तैयार हो गये । नट की प्रत्येक बात को पूरा कर देने का, प्राण रहते, प्रण उन्हों ने किया । सब तरह से अपनी स्वीकृति उन्हों ने दे दी । फिर भी उनके हितेच्छुकों ने उन्हें समझाया । पर अन्त में जो भी कुछ होनी थी, वही हो कर रही । बात की बात में, अपने सारे प्यारे परिवार और अतुलनीय सम्पत्ति से नेह-नाता तोड़, कुमार नट के साथ हो लिये । नट-वेश, धारण उन्हों ने कर लिया । श्रत्र तो दिन पर दिन महीनों पर महीने और वर्ष पर वर्ष बीतने लंग। एक दिन श्राया, जब चारह वर्ष भी, नटकन्या की प्राप्ति को धुन में, कुमार ने पूरे-पूरे काट दिये । काम लगन से हुआ था । श्रतः कुमार नट-विद्या में भी पूरे-पूरे निपुण बन गये । व तो कुमार के लिए बात केवल इतनी सी रह गई थी, कि किसी भी राजधानी में चल कर, राजा के सामने तमाशा दिखाना; और उस की
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