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मेघ-मुनिः
तथा शरीर आदि भी बीच-बीच में ठुकराते ही रहे. । सव के. पैरों की धूल भी उन पर कुछ कम नहीं गिरी। इन हरकतों से, एक ही रात में, नवदीक्षित मुनि का मन, वैराग्य.से विपम विरोध कर उठा । दीक्षित हाने के पूर्व, सभी सन्त जन, बड़े. अदय के साथ, उन्हें 'मेघ कुमार ' के.आदर सूचक नाम से सम्बोधित करते थे। अब वह अदव और अदाएँ भी एक दम गायब हो गई । श्राज अपने को मेघो' के नाम से पुकारते सुन कर, उन के हृदय को गहरी चोट पहुँची। अतुलित. राज-वैभव, अधिकार के मद, और अनेक दास-दासियों के बीच प्रेम से पले हुए, कल के 'राजकुमार मेघ', और आज के 'मघ-मुनि', इन तरह-तरह के अपमान को और अधिक समय तक सहन न कर सके। उन्होंने निश्चय किया,कि अभी तो पाव में एक पौनी भी नहीं कती है। सुबह होते ही, अपने भण्डोपरकण भगवान् के हाथों सौंप, अपने, घर की राह लूँगा। वहाँ फिर, इस प्रकार का न तो कोई बाँस ही रह पावेगा:
और न कोई बाँसुरी ही तब वहाँ वज पावेगी।" सुवह हुश्रा.. ही था, कि मुनि अपने इरादे के अनुसार, भगवान् के निकट. पहुँच गये । अन्तर्यामी भगवान ने, उन के हृदयस्थ भावों को. जांन कर, उन के निकट पाने के पूर्व ही, यूँ कहना शुरू कर दिया, " मुनिवर मेघ ! क्या, एक ही रात में, और वह भी केवल मुनियों के टल्ले पल्ले-मात्र से, यूँ घबरा उठे ? अपने गत-' जन्म के कप्टों को तो कदाचित् तुम ने इस समय ..स्मरण भी न. किया, होगा :! अपने पर भव की गाथा को तो जग सुनो ! उन दिनों, तुम एक हाथी के रूप में थे। वहाँ सात, सौ ..हथनियाँ तुम्हारे साथ थीं। वैताट्य ..पर्वत
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