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जैन जगत् के उज्ज्वल तारे
रहे थे। अचानक, रानी की निगाह मुनि के. ऊपर उस क्षण पड़ गई । उन्हें देखते ही अपने भाई का भान हो पाया। अतः खेल से कुछ दिल उन का हट गया । परन्तु राजा ने इस का कुछ और ही मतलव समझा। रानी और मुनि के वीच कुछ अनुचित सम्बन्ध होने की मन में आशंका करते हुए, चौपड़ को वहीं छोड़, मन ही मन कुछ झल्लाते हुए, वहाँ से वे उठ बैठे। दरवार में श्रा, जल्लादों को उन्हों ने बुलाया। और, मुनि के सारे शरीर की खाल उतार डालने की कठोर अाशा उन्हों ने उन्हें दी। प्राज्ञा मिलते ही जल्लाद, मुनि के पास, जा धमके । वे गोचरी के लिए इधर-उधर अभी घूम ही रहे थे। कहीं भी निदाप भोजन-पानी उन्हें अभी तक मिला नहीं था। जल्लादों ने राजाज्ञा उन्हें सुनाई; और, स्मशान की ओर उन्हें वे ले चले। इस सन्देश को पाकर भी मुनि पहले ही जैसे स्वस्थ थे। राजा
और जल्लादों के प्रति, किंचित्-मात्र भी द्वेप उन के दिल में नहीं था। शरीर का मोह तो. दीक्षा के प्रथम दिन से ही वे छोड़-छाड़ बैठे थे । हँसते-हँसते स्मशान-भूमि में वे आ पहुँचे;
और, प्रभु के ध्यान में निमग्न वे हो गये । जल्लादों ने अपना काम शुरू किया। और, वात की बात में, खरबूजे का छिलका जैसे उतारा ज ता है, ठीक उसी तरह, मुनि की खाल उन्हों ने उतार फेंकी। सुनि ने उफ़ तक न किया। वे वैसे ही अविचल ध्यान में मग्न रहे । उन की क्षमा-शील आत्मा, दिव्य केवल मान को प्राप्त कर, अलौकिक तथा अक्षय सुख के स्थान, मोक्ष में जा विराजी । सच है, वादल के बिना, जैसे बिजली का प्रकाश कमी हो ही नहीं सकता, ठीक उसी प्रकार, विपत्ति के . विना, मनुष्य के वास्तविक गुणों का प्रकाश भी कभी हो ही
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