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जैन जगत् के उज्ज्वल तारे
पहुंची थीं। हवा ने अपना विकराल प्रवाह बहाया। अधकटी शाखा, वायु के प्रचण्ड वेग से, सुतार, मुनि और मृग, तीनों के ऊपर, अचानक आ गिरी । बस, उसी क्षण, तीन का. वहीं का वहीं, अन्न हो गया। बलदाऊर्जा अपनी कटोर तपस्या के चल, सुतार उस काल के क्षणिक उच्च-भाव के दान से, और मृग अपने तात्कालिक सुन्दर एवं सेवा-मय निष्कपट मनसूबों के सहारे, यो वे तीनों के तीनों, पांचवे स्वर्ग में सिधार गये। ___ जब क्षण-भर की शुद्ध सेवा एवं त्याग-पूर्ण भावनाओं की जड़ इतनी गहरी जा सकती है, तब जीवन-भर की निष्कपट सुक्रियाओं, तथा सत्संगति से, निर्वाण-पद का मार्ग, निष्कंटक बन जाय, तो इस में अचरज की कोई बात ही नहीं।
सरलता, शुद्धता एवं सद्भावनाएं, स्वर्ग की सुदृढ़ एवं सुन्दर सड़के हैं।
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