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मेठ-सुदर्शन दारों से भी न कहा गया। रानी के बनावटी इए देवता की सागराम-कहानी राजा के सामने रखी गई । दासियों के दीपन और रानी के शील का साग भगडा फूट गया। सेटजी के चरणों में पढ़ कर, गजान क्षमा याचना की । सेठजी के सत्य की सोलह माना जय हुई। उन का यश-सौरभ और भी फूट पड़ा। संसार ने प्रत्यन दगा और माना, कि बड़े से बड़ा सांसारिक बल भी शरण मात्र यात्मिक बल के यागे भी कुछ नहीं-सा है। सेटजी के इस व्यापार मे. अनेकों की, अकथनीय श्रान्माननि हुयागे चल कर, भी सत्पथ के पथिक यन।
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