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________________ 111 म० चन्द्राबाई नरवस होता जा रहा था। धीरे-धीरे मेरी आवाज भी भतीजा क यो। गलेमें भी सुननुसाहट होने लगी थी । में समृष्टिरित अर्थ कह रहा था, पर मुझे ऐसा लग रहा था कि हो रहा है। चार-पांन गावाजकी व्याख्या पात्रा कि- "अवगाहना नाही बूटियां होती है, अनन्तभागी जननगुण वृद्धि क्यो नही होती ?" में उनका समाधान नहीं रहा जीर घबड़ाकर काले झांकने लगा । उन्होंने मधुर स्वर-- -"ययाः प्रदेशाः धर्माधर्मैकजीवानाम्" सूत्र याद है। जब जगात प्रवेश है तो उसमें अनन्तभाग या अनन्नगुणवृद्धि या और अपनी पराजय स्वीकार कर ली । होगी? इण्टरव्यू समाप्त हुआ। वह बोली- निजी ! मग विना चालोकी नैतिक freeके लिए एक रात्रि पाटनाला गीत है। धनके बिना मनुष्य उठ सकता है, विनाके बिना भी बड़ा बन सकता है, पर चरित्रबलके विना सर्वथा हीन और पशु है । जानरणहीन ज्ञान पाण है । नैतिक व्यक्ति हो अपने प्रति सच्चा ईमानदार हो सकता है। गजकी स्कूल और कॉलेजकी निक्षामें नैतिकतावा जभाव है । बच्ने अपरिपक्व घडे के समान हैं, इनके ऊपर आरभगे ही अच्छे सस्कारीका पना आवश्यक है | अतएव हाईस्कूलोमे पढनेवाले अपने बच्चोकी धार्मिक शिक्षा देनेके लिए एक रात्रिपाठयाला सोलनी है। आपको उस पाठशालाका शिक्षक बनना होगा । आप सुविधानुन्नार प्रात. और मायकाल बच्चोको धार्मिक शिक्षा दे, शहरमें यो तो ५०-६० बच्चे पढनेके लिए मिल जायेगे, पर जब तक २०-२२ लडके भी आते रहेंगे, पाठयाला चलती जायगी । इस पाठशालाका कुल व्यय हम अपने पाससे देगी । आप इस बातका खयाल रखे कि श्लोक या पद्य रटानेको अपेक्षा उन्हें जीवन क्या है और उसे कैसे व्यतीत करना चाहिए- सिखलाये । शिक्षाको कल्याणकारी बनानेके लिए शिक्षकको पूर्ण दायित्वका निर्वाह करना होता है । उसे अहकार छोड़कर एक ही मार्गके यात्रीके रूपमे
SR No.010048
Book TitleJain Jagaran ke Agradut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1952
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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