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________________ अणोरणीयान् महतो महीयान् पं० कैलाशचन्द्र सिद्धान्तशास्त्री पू राज्य क्षुल्लक श्री गणेशप्रसादजी वर्णीकी उपमा देवताओमे से यदि किसीसे दी जा सकती है तो शिवजीसे । शिवजीके वावा भोलानाथ, विश्वनाथ आदि अनेक नाम है और ये नाम वर्णीजीमे भी घटित होते है । वे सदा सबका कल्याण करनेमें तत्पर है । कोई भी व्यक्ति अपना दुख-दर्द उनके सामने रखकर उनसे क्रियात्मक सहानुभूति प्राप्त कर सकता है । वे किसीको मना करना जानते ही नही । उनके मुख से सबके लिए एक ही शब्द निकलता है- 'हम भैय्या ।' और राजाओमेसे यदि किसीसे उनकी उपमा दी जा सकती है तो राजा भोजसे । राजा भोज विद्वानोके लिए कल्पवृक्ष था । एक वार किसीने यह अफवाह उड़ा दी कि राजा भोज मर गये । विद्वानोमे कुहराम मच गया और एक विद्वान् के मुखसे निकल पडा- 'अथ धारा निराधारा, निरालम्बा सरस्वती । पण्डिताः खण्डिताः सर्वे भोजराजे दिवंगते ॥ ** इतने ही ज्ञात हुआ कि अफवाह झूठी थी, राजा भोज सकुशल है । तव वही विद्वान् कह उठा--- * श्रर्थात् 'आज राजा भोजका स्वर्गवास हो जानेसे धारा नगरी निराधार हो गई, सरस्वतीका कोई अवलम्बन नहीं रहा और पण्डित खण्डित हो गये- उनको सन्मान देनेवाला कोई नहीं रहा ।"
SR No.010048
Book TitleJain Jagaran ke Agradut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1952
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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