SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 147
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ खर मोतीसागर : एक राजा साधु श्री कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर ITसकी भी एक तस्वीर होती है और दूरकी भी। पासको तस्वीरमें हाथ-नाक ही नहीं, तिल और रेखाएँ भी साफ दिखाई दे जाती है। दूरकी तस्वीरमें यह सव वात तो नही होती, पर चित्रकार अच्छाहो, तो झिलमिल वातावरणका एक अद्भुत सौन्दर्य उसमें अवश्य होता है। __स्वर्गीय सर मोतीसागरको मैने कभी नहीं देखा, पर उन्हें पूरी तरह जाननेवालोसे उनके सम्बन्धमें इतना सुना है कि मुझे अक्सर ऐसा लगता है कि मै बहुत दिन उनके पास रहा हूँ। भावनाकी इसी छायामें जब-जब मै उनकी समीपता अनुभव करता हूँ, मुझे लगता है, मैं एक ऐसे व्यक्तित्वके पास बैठा हूँ, जिसमें पुराने युगके दो व्यक्तित्व एक साथ समाये हुए है.एक चमकदार राजाका और दूसरा शान्त साधुका, और शक्तिके साथ भस्तिका ऐसा सरल स्पर्श मुझे मिलता है कि जैसे अभी-अभी मैं किसी उपवनसे घूमकर लौटा हूँ। x x तीन सस्मरणोमें उनके तीन चित्र है, जो मिलकर उनका एक ऐसा चित्र बनाते है, जिसमें एक्स-रेकी तरह उनका अन्त करण तक साफ दिखाई देता है ? कालेजके विद्यार्थी-साथियोमें मोतीसागरकी सच्चरित्रताका आतङ्क था। वे न कभी किसी अश्लील वातचीतमें भाग लेते, न कार्यकलापमें । इससे साधी उनका आदर तो करते, पर कुढते भी और सदा इस फिक्र रहते कि कैसे इसकी भगताई ढीली पड़े। एक दिन मोतीसागरके पिताजी कही वाहर गये थे कि कुछ साथियोने उनसे कहा-"मोती! कल शामको हम तुम्हारे घर आवेंगे !" दे वहुत खुश हुए।
SR No.010048
Book TitleJain Jagaran ke Agradut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1952
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy