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सेठ मथुरादास टडैया
५३३ जीवित रहे, प्रतिदिन प्रात और सायकाल क्षेत्रपाल जाकर पूजन करना तथा शास्त्र-प्रवचन सुनना-उनकी नियमित रुचि थी। क्षेत्रपालमें सुन्दर धार्मिक ग्रथोका सग्रह हो सके, इस इच्छासे उन्होने न केवल वहुत से वहुमूल्य ग्रथोको प्रयत्नपूर्वक प्राप्त ही किया वल्कि बहुत-से लिखधारियो (हायसे ग्रथोकी नकल करनवाले लेखको) को आश्रित रखकर उनसे भी नथ लिखाये। ___ उनकी पारिवारिक आर्थिक स्थितिकी आज जो सबलता है, उसका वहत वडा श्रेय उनके व्यवसाय-कौशलको ही है। वम्बई, टीकमगढ, महरौनी, पछार, वामौरा, चैदेरी, हरपालपुर आदि-आदि कई मडियोमें उनकी गद्दियाँ थी, जिनकी सुव्यवस्था वे अपने सुयोग्य भतीजे पन्नालालजी टडयाके सहयोगसे करते थे। ___उनकी अनुकरणीय विशेषता थी कि इतने निपुण और बड़े व्यापारी होनेपर भी 'वनियापन' उन्हे छ नहीं गया था। उनके मुनीम, नौकर-चाकर जहाँ उनकी गालियाँ सुननेके अवश पात्र थे, वहाँ उनके अत्यन्त उदार सरक्षणके अधिकारी भी। सम्मेदशिखरके आसपास, सम्भवतः कलकत्ता या पटना, व्यावसायिक कार्यसे जाकर भी, उनका एक मुनीम वन्दनार्थ शिखरजी भी क्यो नही गया, इसपर उस मुनीमको उन्होने इतना डाटा कि उसे दूसरी बार, ऐसा ही अवसर आनेपर शिखरजीकी यात्रा करनी ही पड़ी। मार्गमे क्यो उस मुनीमने अपनी एक वक्तकी खुराकमे केवल तीन आने ही खर्च किये और इस प्रकार सेठ मथुरादासकी मुनीमौके पद को लज्जित किया, इसपर उन्होने उसको इतनी गालियाँ दी कि सुनने वालोको कानोपर उँगलियाँ रख लेनी पडी। नौकरी करते-करते जो नौकर या मुनीम मर गया, उसके बाल-बच्चोको आजीवन पेंशन देना और उनके सुख-दुखकी खोज-खवर एक कौटुम्बिककी भाँति ही रखना-आज कितने धनी ऐसा करते है ? सेठ मथुरादासके लिए यह सामान्य वात थी!
वयोवृद्ध चौधरी पलटूरामजी, जो आज भी जीवित है और सेठ मथुरादासजीकी चर्चा आते ही जिनके नेत्र सजल तथा कंठ आर्द्र हो उठता