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सेठ मथुरादास टडैया
५३१ जब यात्राले घर वापिस आया तो यथावसर और यथाप्रसंग मैने बड़ेवुजुर्गोते पूछ-ताछ प्रारम्भ की। उत्तर-स्वरूप उनसे जो कुछ सुननेको मिला, वह आज भी मेरे सश्रद्ध हृदयकी चिर-स्मरणीय निधि है, और
आज जब कि मुझमें इतनी समझ आ गई है कि मैं 'हिन्दुस्तान, गाँधीका हिन्दुस्तान', इस उक्तिमे निहित भावको जल्दी ही ग्रहण कर लेता हूँ, तव सोचता हूँ कि सेठ मथुरादासजीसे सम्बन्वित यह जन-कथन, ललितपुर, सेठ मथुरादासजीका ललितपुर', क्या ऐसी ही बड़ी उक्तियोका छोटा संस्करण नहीं है। गाँधीके नामसे, ससार हिन्दुस्तानको जानता है, पर क्या यह भी सच नहीं है कि मेरे छोटे से ललितपुरको लोग सैठ मथुरादास के नामसे जानते है ?
___ इकेहरा-छरेहरा शरीर, ठिंगना कद, ऊंचा और चौड़ा ललाट, गोरा रंग, दोनो आँखोके आकारमे इतना कम और सूक्ष्म अन्तर कि वह दोप न होकर कटान बन गया। पहनावेमे महाजनी ढंगकी बुन्देलखंडी वोती अथवा सराई (चूडीदार पायजामा), तनीदार अंगरखा, सिरपर मारवाडीसे सर्वथा भिन्न बुन्देलखडी लाल पगड़ी, गलेमे सफेद दुपट्टा । स्वभाव, मानो मोम और पाषाण-दोनोका सम्मिश्रण । क्षण भरमें नावेग, क्षण भरमे करुण । बादाम या नारियलकी भांति ऊपरसे कठोर, भीतरसे कोमल-अन्त सलिल, पाषाणके नीचे प्रवहमान निझर । बिना गाली दिये बात नहीं करेंगे, किन्तु गाली वह जो शब्दोंसे तो गाली लगे किन्तु भावनामें आगीवाद-सी । स्वभावकी इस अप्रियकर विशिष्टता के होते हुए भी लोकप्रिय इतने कि सरकारकी ओरसे कई वर्षों तक स्थानीय म्युनिसिपल वोर्डके वाइस चेयरमैन नियुक्त होते रहे । एक बार अखिल भारतवर्षीय परवार-सभाके सभापति भी चुने गये थे। धर्मसाधना उनकी प्रकृति थी और आयुर्वेद हॉवी । फलत धार्मिक और आयुर्वेदिक दोनो ही विषयोंके सुन्दर नथोंका विशाल सत्रह किया। पुस्तकालय और औपवालयकी त्यापना की।