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________________ श्री सुमेरचन्द एडवोकेट = गोयलीय = बाबू सुमेरचन्दजीके निधन-समाचार जिस मनहूस घड़ीमें मुझे सुननेको मिले, फिर ऐसी कुघडी किसीको नसीव न हो। यह अनहोनी वात जब उनके सम्बन्धीने मुझे बताई तो मानो शरीरको लकवा मार गया। में उसकी ओर हतबुद्धि वना-सा देखता रहा। समझमें नही आया कि मै उसका मुंह नोच लूं या अपना सिर पीट लूं । रुलाईसे गला रुंध रहा था, मगर घरवालोके भयसे खुलकर रो भी न सका । रातको कई वार नीद उचाट हुई, क्या वावू सुमेरचन्दजी चले गये? दिल इस सत्य वातको निगलनेके लिए तैयार नहीं होता था। मगर रह-रहकर कोई सुइयाँ-सी चुभो रहा था । और दिमागमें यह फितूर वढता जा रहा था कि वावू सुमेरचन्दजी अव देखनेको नहीं मिलेगे।
SR No.010048
Book TitleJain Jagaran ke Agradut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAyodhyaprasad Goyaliya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1952
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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