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जैन-जागरणके श्रनदूत
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चहुंओर कम-से-कम षष्ठ गुणस्थानी जीवोका घर्मंशासन-काल मानवजातिके --- नही नही जीवविकासके इतिहासमें
मुख्य आदर्श प्राप्त करे,
जिससे प्राणिमात्रका अक्षय्य कल्याण हो ।
इसके साथ यह भी निवेदन कर देना उचित समझता हूँ कि सब इस युगमें साख्य, न्याय, बौद्ध आदि एकान्त दर्शनोसे अनेकान्तवादका मुका'बिला नही है, आज तो साम्राज्यवाद, घनसत्तावाद, सैनिकसत्तावाद, गुरुडमवाद, एकमतवाद, वहुमतवाद, भाववाद, भेषवाद, इत्यादि भिन्न-भिन्न जीवित एकान्तवादसे अनेकान्तका संघर्षण है । इसी सघर्षणके लिए गाधीवाद, लेनिनवाद, मुसोलिनीवाद आदि कतिपय एकान्तपक्षीय नवीन मिथ्यात्व प्रवल वेगसे अपना चक्र चला रहे है |
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अत. इस युगके समन्तभद्र वा उनके अनुयायियोका कर्तव्यपथ तथा कर्म्म उक्त नव-जात मिथ्यात्वोको अनेकान्त अर्थात् नयमालामें गूंथकर प्रकट करना होगा, न कि भूतमें गडे हुए उन मिथ्यादर्शनोको कि जिनके लिए एक जैनाचार्यने कहा था कि " षड्दर्शन पशुग्रामको जैनवाटिकामें चराने ले जा रहा हूँ ।" महावीरको आदर्श अनेकान्त-व्यवहारी अनुभव करनेवालोका मुख्य कर्तव्य है कि वे कटिवद्ध होकर जीवोको और प्रथमतभारतीयोको माया महत्त्व - वादसे बचाकर यथार्थ मोक्षवाद तथा स्वराज्य का आग्ग्रह-रहित उपदेश दें । और यह पुण्यकार्यं उन्ही जीवोसे सम्पादित होगा, जिनका आत्म-शासन शुद्ध शासनशून्य वीतरागी हो चुका हो । अन्तमें आपके प्रशस्त उद्योगमें सफलताकी याचना करता हुआ अजमेर आपका चिरमुमुक्षु वधु जुनलाल सेठी
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