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श्रीजैनदिग्विजय पताका (सत्यासत्यनिर्णय) ।
. श्री वीतरागाय नमः। जैनधर्म की प्राचीनता का इतिहास ।
(प्रश्न) जैनधर्म कब से प्रवर्तन हुआ (उत्तर) हे महोदय ! जैनधर्म अनादि काल से जीवों को मोक्ष प्राप्त कराने वाला प्रवाह से प्रचलित है। (प्रश्न) हमने सुना है बौद्ध मत की शाखा जैन मत है और ऐसा भी सुना है जैन मत की शाखा बौद्ध मत है, किसी काल में ये एक थे और कई मनुष्य ऐसा भी कहते हैं कि विक्रम सम्वत् छ. सौ के लग भग जैन मत प्रगटा है तथा कोई कहते हैं विष्णु भगवान् ने दैत्यों का धर्म भ्रष्ट करने को अहंत का अवतार लिया तथा कोई कहते हैं मछंदरनाथ के बेटों ने जैन मत चलाया है तथा कोई कहते हैं साढातीन हजार वर्षों से और विलायतों से जैनमत इस आर्यावर्त में आया है इत्यादि जिस के दिल में आने वैसी ही कल्पना कर वक उठते हैं लेकिन इन सब दंत कथाओं को आल जंजालवत् बुद्धिमान समझ सकते हैं। प्रमाण शून्य कथन होने से विवेकी स्वबुद्धयनुसार ही विचार लें इन पूर्वोत कुविकल्पों में से कौनसा कुविकल्प सच्चा है क्योंकि एक से एक विरुद्ध कुविकल्प है इस मुजिब ही अगर सब सत्य मानने में आवे तो वांभी (ढेढ ) लोक कहते हैं ब्रह्मा का बड़ा पुत्र बांभी था, बांभी की औलाद वाले सव चंभण कहलाये, इस वजे ही तैलंग देशी ढेढ अपने को मादगौड़ नाम से पुकारते हैं, कहते हैं स्वयंभू भगवान् के दो पुत्र भये, श्रादगौड़ और मादगौड़। भादगौड़ ब्रामण बजने लगे और हम लोग मादगौड़ ढेढ बजने लगे। इस बजे ही चमार कहा करते हैं चामों, और बानों, विश्वस्टजू के दो लड़कियां थी, चामों की औलाद चमार बजने लगे, वानों की औलाद बनिये, हे बुद्धिमानों यदि आप इन वृत्तांतों को सत्य कभी मान सकते हो तो पूर्वोक्त जैनधर्म की उत्पत्ति भी सत्य मानते होगे, इस्तरे शंकरदिग्विजयादिक ग्रंथों में जो जैनमत का खंडन लिखा है वह भी जैनधर्म का अनभिज्ञता सूचक है, सांप की लकीर को