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। ज ] भक्त जनों के संकट काटने को धारण किये खैर मानलो, लेकिन जो उत्तम पुरुष जिस जाति कुल में अवतार लेता है उस जाति- कुत के आपदा की रक्षा स्वशक्त्यनुसार अवश्य करता है लेकिन भगवान् तो सर्व शक्तिमान् हैं उन्होंने जिस मत्स्य जाति में 'अवतार लिया उस मत्स्म जाति को कनौजिये; सरवरिये. बंगाली ब्राह्मण- तथा शद्रवर्ण, यवन, म्लेच्छ आदि निरंतर भक्षण किया करते है और करेंगे इसी प्रकार कच्छप को, वाराह (सूकर को) संहार कर पूर्वोक्त जाति भक्षण करती है जिसमें यवन सूकर को भक्षण नहीं करते है। इसी प्रकार हयग्रीव (षोड़े) का अवतार भगवान् ने धारण किया उस अश्व जाति को यवन जाति तथा मान्स देश वाले आदि मार कर भक्षण . करते हैं इस प्रकार स्वजाति कुल की रक्षा ही तुम्हारा भगवान् नहीं करता तो फिर कैसे यकीन हो कि उनके ध्याता भक्त जन की वह रक्षा करेगा। फिर तुम कहते हो भगवान् की सर्व १६ कला हैं सो कृष्ण नारायण पूर्ण सोलह कला' का अवतार था, खैर मानलो, लेकिन उस कृष्ण नारायण के विद्यमान समय में ३ अवतार दूसरे भी विद्यमान थे ऐसा तुम्हारे शास्त्र का लेख है और तुम मानते भी हो अब बतलाओ पूर्ण १६ कला तो कृष्ण में थी और वेद व्यास अवतार, । धन्वंतरि अवतार तथा शुकदेव अवतार इन में तो एक भी कला नहीं थी जब ईश्वर की कला नहीं तो इन कला रहितों को ईश्वर का अवतार किस प्रकार मानते हो! अलंविस्तरेण।
कई एक मतांध केवल नाम से ही मुक्ति होती है ऐसा कहते हैं, तब तो तप, इंद्रिय दमन, दान, दया, क्रोध, मान, माया, लोम का त्याग करना व्यर्थ ही ठहरा । मिश्री २ कहने से मुंह मीठा हो, रोटी २ कहते भूख निवृत्त होजावे तब तो यकीन भी करलें कि भगवान् के नाम मात्र से मुक्ति हो जावेगी अन्यथा एकांत हठ वचन है। इस प्रकार तीर्थ जल के स्नान मात्र से अभ्यंतर पाप, जीव हिंसा, झूठ, चौरी, परस्त्रीगमनादि अनेक कुकृत्य का दूर होना मानने वाले भी विचार लेवें । अच्छे कृत्य से पुण्य, बुरे कृत्य से पाप, जीव आप ही करता है तथा आप ही भोगता है और सब कमों को शुम भाव द्वारा क्षय करने से जीव स्वयं मुक्त हो जन्म भरण रहित ईश्वर रूप होता है | साकार ईश्वर का स्मरण, ध्यान, पूंजन इसलिये करना उचित है कि उन्होंने उच्च गति प्राप्त करने