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(६१) ३. मारणान्तिक-कोई कोई मरने के पहिले जहां जाना हो उस को फैल कर स्पर्श कर आता है. फिर मरता है।
४ वैक्रयिक देव नारकी आदि अपने शरीर को छोटा बड़ा कर लेते व देवगण एक शरीर के अनेक शरीर बनाकर आत्माको फैलाकर प्रवेश कराते और काम लेते हैं।
५. तैजस-किसी मुनि के क्रोधवश पाएँ कन्धे से बिजली का शरीर आत्मा सहित निकलता है जो नगरादि को भस्म करता है: यह अशुभ तैजस है । किसी मुनि के दया वश दाहिने कन्धे से शुभ तैजस निकलना है जो दुःख के कारणों को मेट देता है, यह शुम तैजसहै।।
६. आहारक-किसी तपस्वी मनि के मस्तक से एक स्वेत सूक्ष्म पुरुपाकार शरीर आत्मा सहित निकल कर शङ्का दूर करने व असंयम दूर करने के लिये किसी केवली व श्रुतकेवली के पास जाता है।
७ केवल-जिस श्र(हन्त परमात्मा के श्रायु कर्म की 'स्थिति कम हो व नाम, गांव, वेदनीय की स्थिति बहुत हो तो उनकी स्थिति को आयु की स्थिति के समान करने के लिये आत्मा के प्रदेश तीन लोक में फैलते हैं।
(७) यह जीव आप ही अपने पाप पुण्य के अनुसार संसार भ्रमण किया करता है ।
(c ) यही जीव यदि पुरुषार्थ करे तो स्वयं सिद्ध भी हो सकता है।
(१) यह जीव शरीर छोड़ने पर यदि शुद्धहोनो अग्नि की शिखा के समान ऊपर को जाता है और लोक के अग्रभाग में ध्यानाकार विराजमान रहता है, परन्तु संसारी जीव कर्म.
उनकी स्थितिष नाम, गांव, व परमात्मा के