________________
( ५४ ) २०. मूर्ति स्थापना सदा से है
नवीन नहीं
लोकमें किसी को पहिचानने के लिये नाम रखना ज़रूरी है। वैसे उसके पास न होते हुये उसके स्वरूप को जानने के लिये उसकी मूर्ति या तस्वीर ज़रूरी है। मकान बनाना, चित्र पर खींचना, पत्र लिखना, ये सब बाते जगत में जहाँ जहाँ व जब जब कर्मभूमि होती है, आवश्यक हैं। जगत में सदा ही से क्षत्रिय व वैश्यादि के कर्म हैं। इसलिये सांकेतिक चिन्हों की भी प्राप्ति सदा हो से है । घट को लिखा देख कर घट का बोध हो जाता है । यदि पहिले नकशा न खीचा जाय तो मकान नहीं बन सकता है । दूर देश में बैठे हुये स्त्री पुरुषों के स्वरूप का ज्ञान चित्रों से होता रहता है । इसलिये अब भक्तिमार्ग सदासे है, तव भक्ति योग्य Object of Worship अचेतन है तो भी शुभ भावोंकी उत्पत्तिमें निमित्त होनेसे पुण्य. बंध कारण हैं। जिनेन्द्ररागादि दोष रहित हैं; शस्त्र, श्राभू षण वर्जित है, प्रसन्न चन्द्रसमान मुख की शोमाको रखते हैं, इंद्रियों के ज्ञान से रहित हैं, लोक अलोक को देखने वाले है, कृतकृत्य हैं, जटा आदि से रहित हैं,ऐसे परमात्मा की प्रतिमा का व मंदिर का दर्शन करने से जैसे मावों की उत्कृष्टता होती है वैसी अन्य मूर्ति प्रादिसे नहीं होती। सर्व कार्य अन्तरङ्ग, बहिरङ्ग, दो कारणोंसे होते हैं । इसलिये यह अच्छी तरह समझलो कि यह मूर्ति पुण्यप्राप्ति के कारण शुभभावों के होने में निमित्त कारण है।