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करते हैं। उनका पूजन केवल अपने भावों की शुद्धि के लिए ही किया जाता है।
यह नियम है कि गुणोंके मननसे अपने भाव गुणप्रेमी होते हैं व अवगुणों के मनन से अपने भाव दोपी होते है। हमारे भावों से ही हमारा भला बुरा होता है। ये देव परम वीतराग हैं । इनकी भक्ति से हमारे भावों में शान्ति आती है । भक्ति मई शान्तभावों से हमारे पाप कटते हैं और पुराय का लाभ होता है। वास्तव में जैनियों की देवपूजा बीर पूजा (HeroWorship ) है ।
पूजा के दो भेद है— द्रव्यपूजा, भावपूजा
जल चन्दनादि द्रव्यों का आश्रय लेकर भेट चढ़ाना द्रव्यपूजा है । गुणोंका विचारना भाव पूजा है। गृहस्थोंके लिये द्रव्य-पूजा के द्वारा भावपूजा का होना सुगम है। गृहस्थों का चित सांसारिक बाधाओं में खिंचा रहता है। इसलिए उनके मन को देवभक्ति में जोड़ने के लिये आठ द्रव्यों के द्वारा आठ प्रकार भावनायें करनी योग्य है। जैसे
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१. जलसे आगे भेटरूप चढ़ाकर यह भावना करनी कि जन्म, जरा, मरण का रोग दूर हो । २. चन्दन से - भव की आताप शान्त हो । ३. अक्षत से -- अविनाशी गुणों का लाभ हो । ४. पुष्प से काम विकार का नाश हो । ५. नैवेद्य से -- दुधा रोग की शांति हो । ६. दीप से --मोह अन्धेरे का नाश हो । ७. धूप से आठ कर्मों का नाश हो । ८. फल से - मोक्षरूपी फल प्राप्त हो ।
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