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करणानुयोगके प्रसिद्ध ग्रंथ श्रीधवल, जयधवल, महाधवल तथा श्री गोम्मटसार त्रिलोकसार आदि हैं।
चरणानुयोग के प्रसिद्ध ग्रन्थ श्रीमूलाचार, रत्नकरण्ड श्रावकाचार, चारित्रसार आदि है ।
द्रव्यानुयोगके प्रसिद्ध ग्रंथ समयसार, परमात्माप्रकाश सर्वार्थसिद्धि, राजवार्तिक, श्लोकवार्तिक आदि हैं।
ऊपर कहे प्रमाण देव शास्त्र गुरु का विश्वास करना, और जो इन गुणोंसे रहित हो उनको नहीं मानना, सो व्यवहार सम्यग्दर्शन है । इसी श्रद्धान के बलसे शास्त्राभ्यास करने से सात तत्वों का ज्ञान होता है । हमें इन तीनों को भक्ति सच्चे भावों से करना चाहिए । यही मोक्षमार्ग का सोपान है।
१८. देवपूजा का प्रयोजन
श्री अरहंत और सिद्ध परमात्माका पूजन करना अर्थात् उनके गुणानुवाद गाना इसलिए नहीं है कि हम उनको प्रसन्न करें। वे तो वीतराग हैं-न हमारी प्रशंसा से राज़ी हो हमें कुछ देते हैं, न हमारी निन्दासे नाराज़ हो हमारा कुछ बिगाड़
* शास्त्र का लक्षण -
श्राप्तोपशमनुल्लंध्यम दृष्टष्ट विरोधकम् ।
तत्वोपदेश कृत्सार्व शास्त्रं कापथ घट्टनम् ॥ ६ ॥
( रत्नकरण्ड श्रावकाचार ) भावार्थ - शास्त्र वह है जो श्राप्त अरहंत देव का कहा हो, खंडनीय न हो, प्रत्यक्ष परोक्ष प्रमाण से वाधित न हो, आत्मतत्वका उपदेशक हो, सर्व हितकारी हो व मिथ्या मार्ग का खण्डन करने वाला हो ।