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( २ ) सूत्रकृताङ्ग — इसमें सूत्ररूप से ज्ञान और धार्मिक रीतियों का वर्णन है । पद ३६००० हैं ।
( ३ ) स्थानाङ्ग – एक से ले अनेक भेद रूप जीव पुद्धलादि का कथन है । ४२००० पढ हैं ।
(४) समवायाङ्ग - इसमें द्रव्यादि की अपेक्षा एक दूसरे मैं सहयोग का कथन है- १६४००० पद हैं ।
( ५ ) व्याख्या प्रज्ञप्ति – इसमें ६०००० प्रश्नों के उत्तर | २२८००० पद हैं।
(६) ज्ञातृधर्मकथाङ्ग - इसमें जीवादि द्रव्यों का स्वभाव, रत्नत्रय व दशलक्षणरूप धर्म का स्वरूप तथा सांसारिक ज्ञानी पुरुषों सम्बन्धी धर्म कथाओं का निरूपण है । इस में ५५६००० पद हैं।
(७) उपासकाध्ययनाङ्ग—इसमें गृहस्थों का चरित्र है । ११७०००० पद हैं ।
( ८ ) अन्तःकृद्दशाङ्ग – इसमें हर एक तीर्थङ्कर के समय जो दश दश मुनी उपसर्ग सह कर केवली हुए, उनका चरित्र है । २३२८००० पद हैं ।
( 8 ) अनुत्तरौपपादिकदशाङ्ग --- इसमें हर एक तीर्थकर के समय जो १० दश दश साधु उपसर्ग सह कर अनुत्तर विमानों में जन्मे, उनकी कथा है। ६२४४००० पद है।
(१०) प्रश्नव्याकरणा इसमें त्रिकाल सम्बन्धी अनेकानेक प्रकार के प्रश्नों का उत्तर देने की विधि और उपाय बताने रूप व्याख्यान तथा लोक और शास्त्र में प्रचलित शब्दों का निर्णय है। इसमें १३१६००० पद हैं।
( ११ ) त्रिपाकसूत्राङ्ग—इस में कर्मों के बन्ध व फलादि का कथन है। १८४००००० पद है।