________________
( ४३ )
Even learned Shankaracharya is not free from the charge of injustice that he has done to the doctrine...... ... It emphasis the fact that no single view of the universe or of any part of it would be complete by itself
भावार्थ - विद्वान शङ्कराचार्य भी उस अन्याय के दोष से मुक्त नही है जो उन्होंने इस सिद्धान्त के साथ किया है। यह स्याद्वाद इस बात पर जोर देता है कि विश्व की या इस कं किसी भाग की एक ही दृष्टि अपने से पूर्ण नही है ।
There will always remain the possibilities of viewing it from otherstand-points.
उस पदार्थ में दूसरी अपेक्षाओं से देखने की संभावनाएं सदा रहेंगी ।
१६. सम्यग्दर्शन का स्वरूप
सम्यग्दर्शन इस श्रात्मा का एक ऐसागुण है जिसके प्रकट होने पर श्रात्मा के स्वरूप का ज्ञान होकर श्रात्मानन्द का लाभ होता है। जहां श्रात्मा के स्वरूप के स्वाद की रुचि हो जाती है वही निश्चय सम्यग्दर्शन है। इस की प्राप्तिके लिये मोक्षमार्ग में प्रयोजनीय जीवादि सात तत्त्वों का श्रद्धान तथा इस श्रद्धान के लिए सच्चे देव, गुरु, धर्म या शास्त्र का श्रद्धान व्यवहार - सम्यग्दर्शन है।
निश्चय सम्यग्दर्शन के बाधक अनन्तानुबन्धी ( जो बहुत गाढ़े चिपके रहने वाले हैं) क्रोध, मान, माया, लोभ तथा