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( ४२ ) सकते हो। इस को समझाने के लिये सप्तभङ्गीनय है या कहने के सात मार्ग है। तुम किसी अपेक्षा से किसी वस्तु की सत्ता कह सकते हो, यह स्यादस्ति है, दूसरी अपेक्षा से उस का निषेध कर सकते हो यह स्थानास्ति है; विधि और निषेध दोनों क्रम से कह सकते हो, यह स्यादस्तिनास्ति है, यदि दोनों अस्ति नास्ति को एक साथ एक समय में कहना चाहो तो नहीं कह सकते, यह स्यादवक्तव्य है . ... "इन भङ्गों के कहने का मतलब यह नहीं है कि इन में निश्चयपना नहीं है या हम मात्र संभव रूप कल्पनाएं करते हैं। जैसा कुछ विद्वानों ने समझा है, इस सब से यह भाव है कि जो कुछ कहा जाता है वह किसी द्रव्य, क्षेत्र, कालादि की अपेक्षा से सत्य है। (जैनधर्मनी माहिती हीराचन्द नेमचन्द कृत सन् १९९१ में छपी पत्र )
डाक्टर जैकोबी कहते हैं-"इस स्याद्वाद से सर्व सत्य विचारों का द्वार खुल सकता है" (देखो जैन दर्शन गुज. राती जैन पत्र भावनगर सं० १६७० पत्र १३३ )
प्रोफेसर फणिभूषण अधिकारी एम० ए० हिन्दू विश्वविद्यालय बनारस अपने व्याख्यान ता० २६ अप्रैल सन् २५ ई० में कहते हैं
It is this intellectual attitude of impartiality, without which no scientific or philosophical researches can be successful, is what Syadvad stands for. __ यह निष्पक्ष बुद्धिवाद है जिस के विना कोई वैज्ञानिक या सैद्धान्तिक खोजे पूर्ण नहीं होसकती है, इसीलिए स्यावाद है।