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________________ ( २८ ) नोट-जैनधर्म में जगत अनादि अनंत अकृत्रिम माना है । जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, काल और आकाश, यह ६ मूल द्रव्य अनादि अनन्त है। परमात्मा निर्विकार ज्ञानानन्दमई है, वह न पैदा करता है और न नष्ट करना है । अमूर्तीक परमात्मा से मूर्तीक जगत विना समान उपादान कारण के नहीं हो सकता; यही बड़ा भारी अन्तर है। १) ईसाई व मुसलमान मत कर्तावाद में गर्मित हैं। इस तरह दुनिया के प्रचलित मतों से जैन दर्शन की भिन्नता है जो आगे के कथन से पाठकों को भली प्रकार प्रगट हो जायेगी। यहां तो संक्षेप में बताई गई है। ११. मोक्ष का स्वरूप व महत्व "वन्ध हेत्व भावनिर्जराभ्यां कृत्स्न कर्म विप्र मोक्षो. मोक्षा" (तत्वार्थसूत्र अध्याय १०१२) भावार्थ-कर्म-बंध के सब कारणों के मिट जाने पर तथा पूर्व में पांधे हुए पाप पुण्य मई कर्मों की निर्जरा या त्याग हो जाने पर सर्व प्रकार के कर्मों से जो छूट जाना है, वही मोक्ष है। मोक्ष प्राप्त आत्मायें सिद्ध कहलाती हैं। उनमें श्रात्मा के अनन्त गुण सब प्रकट हो जाते हैं। उन का निवास लोक के
SR No.010045
Book TitleJain Dharm Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherParishad Publishing House Bijnaur
Publication Year1929
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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