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गूभाग में रहता है। वे अपने अन्तिम शरीर के श्राकार प्रमाण निश्चल श्रात्मस्थ रहते हैं * ।
* श्राठ कर्म संसारी जीवों के थे, उनके चले जाने पर नीचे लिखे आठ गुण प्रकट हो जाते हैं ज्ञानावरण हानान्ते केवलज्ञान शालिनः । दर्शनावरणच्छेदा दुद्यत्केवल दर्शनः ॥ ३७ ॥ वेढनीय समुच्छेदाद व्यावाधत्त्व माश्रिता । मोहनीय समुच्छेदात्सम्यक्व मचलंश्रिताः ॥ ३८ ॥ नामकर्म समुच्छेदात्परमं सौक्ष्म्यमाश्रिताः । श्रायुः कर्म समुच्छेदादवगाहन शालिनः ॥ ३६ ॥ गोत्र कर्म समुच्छेदात्सदाऽगौरव लाघवाः । अन्तराय समच्छेदादनन्तवीर्य माश्रिताः ॥ ४० ॥ दग्धे बीजे यथात्यन्तं प्रादुर्भवति नांकुरः । कर्म बीजे तथा दग्धे न रोहति भवांकुरः ॥ ७ ॥ श्राकार भावतोऽभावो न चैतस्य प्रसज्यते । अनन्तर परित्यक्त शरीराकार धारिणः ॥ १५ ॥ ( तत्वार्थसार - मोक्षवत्व )
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भावार्थ - ज्ञानावरणीय कर्मोंके नाश से अनन्त ज्ञान, दर्शनावरणीय के नाश से अनन्त दर्शन, वेदनीय के नाश से बाधा रहित पना, मोहनीय के नाश से अचल सम्यक्त्व या श्रधान, नाम कर्म के नाश से परम सूक्ष्मता, श्रयुकर्म के नाश से श्रवगाहन गुण, गोत्र कर्म के नाश से हलके भारीपने से रहितपना और अन्तराय के नाश से अनन्तवीर्य, यह सब गुण सिद्धों के प्रगट हो जाते हैं। जैसे जला हुआ बीज फिर नहीं