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५. हिन्दुओं के प्राचीन ग्रन्थों में जैनों
का संकेत आज कल के इतिहासकार ऋग्वेद यजुर्वेद आदि को प्राचीन ग्रन्थ मानते हैं। उनमें भी जैन तीर्थंकरों का वर्णन है।
जैनियों के २२ वे तीर्थकर अरिष्टनेमि का नाम नीचे के मन्त्रों में है :
स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवा स्वस्तिः नः पूषा विश्व वेदाः । स्वस्ति नस्तायो अरिष्ट नेमिः स्वस्ति नो वृहस्पतिर्दधातु ॥ (ऋग्वेद अ० १०६ वर्ग १६ दयानंद भाष्य मुद्रित)
___भावार्थ-महा कीर्तिवान इन्द्र विश्ववेत्ता पूषा. तान्य रूप अरिष्टनेमि व वृहस्पति हमारा कल्याण करें।
वाजस्य नु प्रसव आ बभूवेमा च विश्वा भुवनानि सर्वतःस नेमि राजा परियाति विद्वान् प्रजां पुष्टिं वर्धयमानी अस्मै स्वाहा ॥ (यजुर्वेद अध्याय मन्त्र २५)
भावार्थ-भावयज्ञ को प्रगट करने वाले ध्यान का इस संसार के सर्वभून जीवों के लिये सर्व प्रकार से यथार्थ रूप कथन करके जो नेमिनाथ अपने को केवलज्ञानादि आत्मचतुष्टय के स्वामी और सर्वज्ञ प्रगट करते है और जिनके दयामय उप देश से जीवों को आत्म स्वरूप की पुष्टिता शीघ्र बढ़ती है, उसको पाहुति हो।
अहन विभर्षि सायकानि धन्वाईन्निष्कं यजतं विश्वरूपम् । अर्हन्निदं दयले विश्वमभ्वं नवा श्री जोयो रुद्रत्वदस्ति ।
(ऋग्वेट ०२१०७ वर्ग १७)