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________________ ( २२७ ) क्षत्र चूड़ामणि लम्ब १० श्लोक २४गोविन्दराजाकी कन्या के स्वयंवर में तीनोंवर्ण वाले श्राये । (२१) शत्रुको विजयकर फिर दया व नीति से व्यत्रहार होता था । १ तत्र चूड़ामणि लम्ब १०, श्लोक ५५-५७ - जीवन्धरने काष्ठागारको मारकर फिर उसके कुटुम्बको सुख से रखा तथा १२ वर्ष तक प्रजा पर कर माफ़ कर दिया । "अकरामकरोत्रीं वर्षाणि द्वादशाप्ययम" २ श्रेणिक चरित्र सर्ग २ - राजा उपश्रेणिक ने चन्द्रपुर के राजा सोमशर्मा को उद्दण्ड जान वश किया, फिर उसका राज्य उसे ही दे दिया । (२२) लोग समयविभाग के अनुसार सर्व काम करते थे । क्षत्र चू० लम्ब ११ जीवन्धरकुमार रात दिनका समय-विभाग करके धर्म, अर्थ, काम का साधन करते थे । 'रात्रं दिव विभागेषु नियतो नियति व्यधात् । कालातिपात मात्रेण कर्तव्यं हि विनश्यति ॥ ७ ॥' भावार्थ - जो काल को लांघ कर काम करते हैं उनका करने योग्य काम नष्ट हो जाता है । ( २३ ) शुद्ध भोजन राजा लोग करते थे । श्रेणिक चरित्र सर्ग २ भील राजा क्षत्रिय यमदण्ड ने उपश्रेणिकको भोजन के लिए कहा | तब उसके गृहस्थाचार की क्रिया शुद्ध न देख कर भोजन न किया । जब तिलकवती कन्या ने शुद्ध रसोई बनाई, तव राजा ने भोजन किया ।
SR No.010045
Book TitleJain Dharm Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherParishad Publishing House Bijnaur
Publication Year1929
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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