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________________ ( २२८) (२४) पिता के लिए पुत्र का उद्यम । श्रेणिक चरित्र सर्ग: सिन्धुदेश विशालानगर के राजा चेटकके चेलना कन्या थी। वह सिवाय जैनी के दूसरे को नहीं विवाहता था । उस समय राजा श्रेणिक बौद्ध थे तथा उस कन्या के विवाह ने की चिन्नामें थे। तब पिता-भक्त पुत्र अभयकुमार जैनी बन कई सेठो को साथ ले, अनेक स्थानों में जैनपना प्रकट करते हुए चेलना को रथ में बिठा ले आये। (२५) नियमपूर्वक बनी न होने परभी गृहस्थी देवपूजा आदि छः कर्म पालते थे। श्रेणिक चरित्र सर्ग १३ राजा श्रेणिक व्रती न हो कर भी नित्य आवश्यक पालन करते थे। (२६) गृहस्थ राजा लोग भी श्रावक की क्रियाओं को पालते थे। धन्यकुमारचरित्र सकलकीर्ति कृत ०१ उज्जयनीका राजा अवनिपाल बड़ा धर्मात्मा था। प्रात: काल उठ सामायिक, ध्यान, फिर पूजन, मध्यान्ह में पात्र दान करके भोजन, पर्ण तिथिमें उपवास करता था। बड़ा निस्पृही था । भूमि में सेठ धनपाल को जो धन मिला था वह उसे ही दे दिया था। (२७ ) जैन किसान थे तथा वे त्यागी थे। धन्यकुमार चरित्र अ०२ जैनी कृषक का भोजन कर के धन्यकुमार सेठ हल चलाने लगा। वहाँ सुवर्ण भरा कलश मिला । धन्य कुमार ने
SR No.010045
Book TitleJain Dharm Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherParishad Publishing House Bijnaur
Publication Year1929
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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