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होते थे ।
(३क) ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तीनों में परस्पर संबंध ( उत्तर पुराण पर्व ७२ श्लो ४२४-२५ )
१. राजा श्रेणिक ने ब्राह्मण की पुत्री से विवाह किया । मोक्षगामी अभयकुमार इसी ब्राह्मण पुत्रीके पुत्र हुए थे ! ( उत्तर पुराण पर्व ७४ श्लोक २६ )
२. इसी स्थल पर श्लोक ४६१ से ४६५ में वर्ण का वर्णन यह है
वर्णाकृत्यादि भेदानां देहेस्मिन्न च दर्शनात् । ब्राह्मणादिषु शूद्राद्यै गर्भाधान प्रवर्तनात् ॥ . नास्ति जाति कृतोभेदो मनुष्याणां गवाश्ववत् । आकृति गृहणात्तस्मादन्यथा परिकल्पते ॥ जाति गोत्रादि कर्माणि शुक्ल ध्यानस्यहेतवः । येषु तेस्युस्त्रयांवर्णाः शेत्रा शूद्राः प्रकीर्तिता ॥ श्रच्छेदो मुक्ति योग्याया विदेहे जाति सन्ततेः । तद्ध तु नाम गोत्राढ्य जोवा विच्छिन्न संभवात् ॥ शेषयोस्तु चतुर्थेस्यात् काले तज्जाति संततिः । एवं वर्ण विभागः स्यान्मनुष्येषु जिनागमे ॥ ४६५ ॥
अर्थ- मनुष्य के शरीर में वर्ण आकृति के ऐसे भेद नहीं देखने में आते हैं, जिससे वर्ण भेद हो । क्योंकि ब्राह्मण आदि का शूद्रादि के साथ भी गर्भाधान देखनेमें श्राता है। जैसे गौ घोड़े आदिकी जातिका भेद पशुओं में है ऐसा जाति भेद मनुयोंमें नहीं है, क्योंकि यदि श्राकार भेद होता तो ऐसा भेद होता । जिनमें जाति, गोत्र व कर्म शुक्ल-ध्यानके निमित्त हैं वे ही तीन वर्ण ब्राह्मण, क्षत्री. वैश्य हैं। इनके सिवाय शूद्र कहे गये हैं । मुक्ति के योग्य जाति की सन्तान विदेहों में सदा चली