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जाती है। क्योंकि ऐसे नाम, गोत्रके धारी सदा होते रहते हैं। भरत और ऐरावतमें चौथे काल में ही वर्ण की सन्तान व्यक्त रूप से चलती है, शेष कालों में अव्यक्त रूप से । इस तरह जिन श्रागममें मनुष्यों के भीतर वर्ण का भेद जानना चाहिए ३. उत्तरपुरार्ण पर्व ७५ श्लोक ३२०-३२५
जीवन्धर कुमार वैश्य पुत्र प्रसिद्ध थे । क्षत्रिय विद्याधर गरुड़ वेग की कन्या गन्धर्वदत्ता को स्वयंवर में बीणा बजा कर जीता और विवाहा ।
४. उत्तरपुराण पर्व ७५ श्लोक ६४६-६५१जीवन्धरकुमार ने विदेह देशके विदेह नगर के राजा गयेन्द्रकी कन्या रत्नवतीको स्वयंवरमें चन्द्रकपत्र पर निशाना लगा कर विवाहा ।
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५. उत्तरपुराण वर्ष ७६ श्लोक ३४६-४८प्रीतंकर वैश्य को राजा जयसेन ने अपनी कन्या पृथ्वीसुन्दर विवाही व श्राधा राज्य दिया ।
६. क्षत्र चूड़ामणि लम्ब ५. श्लोक ४२-४६पल्लवदेश के चन्द्राभानगर के राजा धनपति की कन्या पद्मा को जीवन्धर वैश्य ने सर्प विष उतार कर विवाहा । ७. क्षत्र चूडामणि तत्र १० श्लोक २३-२४
विदेह देश की धरणीतिलका नगरी के राजा श्रर्थात् उसके मामा गोविन्दराज की कन्याका स्वयंवर हुआ । उसकी घोषणानुसार तीन वर्णधारी धनुषधारी एकत्र हुए। जीवन्धर ने चन्द्रक यन्त्र को त्रेधा और कन्या विवाही ।
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*"शेष कालों में अव्यक्त रूप से चलती है" यह सम्मति पं० माणिकचन्द जी की है।