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निश्चय से करीब २ वे ही निर्मन्थ हैं जिनका वर्णन बौद्धों की पालीपिटकों (पुस्तकों) में थाया है और ये लोग इस लिये सन् ई० से ६०० वर्ष पहलेके तो होने ही चाहियें। गजा अशोक के स्तंभों में भी निग्रन्थों का लेख है । (शिलालेख नं० २० ) । श्री महावीर जी और उनके प्राचीन मानने वालों में नग्न भ्रमण करने की क्रिया का होना एक बहुत ही प्रसिद्ध बाहरी विशेषता थी, जिससे शब्द दिगम्बर बना है ।
इस क्रिया के विरुद्ध गौतम बुद्ध ने अपने शिष्यों को ख़ास तौर से चिताया था, तथा प्रसिद्ध यूनानी शब्द जैन सूफी में इसका वर्णन है। मेगस्थनीज़ जो ( राजा चन्द्रगुप्त के समय सन् ई० से ३२० वर्ष पहले भारतमे श्राये थे) ने इस शब्द का व्यवहार किया है । यह शब्द बहुत योग्यता के साथ निर्ग्रन्थों को ही प्रगट करता है।
इसी तरह विल्सन साहब H. H. Wilson M. A. अपनी पुस्तक वनाम "Essays and lectures on the religion of Jains” में कहते हैं
The Jains are divided into two principal divisons, Digambers and Swetambars. The former of which appears to have the best pretensions to antiquity and to have been most widely diffused. All the Deccan Jains appear to belong to the Digambar division. So it is said to the majority of Jains in western India. In early philosophical writings of the Hindus, the Jains are usually termed Digambars or Nagnas (naked)