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________________ ( १६६ ) अन्त में मर सातवें नर्क गया । वलदेव सुदर्शन ने धर्मनाथ तीर्थकर के पास दीक्षा ली और तपकर मोक्ष पधारे। (६) श्री अरहनाथ के तीर्थकाल में सुभौम चक्रवर्ती के पीछे निसंभ नामका छठवां प्रतिनारायण हुआ। तबही चक्र. पुर के महाराज वरसेन के वैजयन्ती रानी से छठने बलभद्र नंदिषेण और लक्ष्मीवती रानी से छठवे नारायण पुंडरीक हुए । इन्द्रपुर के राजा उपेन्द्रसेन ने अपनी कन्या पद्मावती का विवाह नारायण पुडरीक से किया। इस पर निशुभ अप्रसन्न हो युद्धको आया । युद्धमें निशुभ मरकर नर्क गया। पुंडरीक राज्य में मोहित हो अन्त में मर कर छठे नर्क गया। बलभद्र । नदिषेणने वैराग्यवान हो तपकर मोक्ष प्राप्त किया। (७) श्रीमल्लिनाथ के तीर्थकालमें विजया पर्वत पर बलिन्द नाम के ७ वे प्रनिनारायण हुए । उसी समय बनारस के इक्ष्वाकुवंशी राजा अग्निशिप के अपराजिता रानी से ७३ बलभद्र नन्दमित्र तथा केशवती रानी से ७ नारायण दत्त उत्पन्न हुए। दत्त के पास क्षीरोद नामका बड़ा सुन्दर हाथी था। उसे बलिन्दने मांगा। दत्तने बदले में कन्या विवाहने को कहा। इस शर्त के न माने जाने पर परस्पर युद्ध हुश्रा । बलिन्द मर कर नर्क गया। दत्तने भी राज्य कर भागों में लीन हो अन्त में सातवां नर्क पाया । नन्दमित्र ने तपकर मोक्ष प्राप्त किया। (E) भगवान मुनिसुव्रत के तीर्थकाल में लंकाके राजा रत्नश्रवा के केकशी रानी से वे प्रतिनारायण रावण हुए। तब ही अयोध्या के राजा दशरथ के कौशल्या रानी से 4
SR No.010045
Book TitleJain Dharm Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherParishad Publishing House Bijnaur
Publication Year1929
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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