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( ३ ) श्री विमलनाथ तीर्थंकर के जीवन काल में ही रत्नपुर का राजा मधु नाम का तीसरा प्रतिनारायण हुआ । तब ही द्वारिका के राजा रुद्र के सुभद्रादेवी रानी से तीसरे वलभद्र सुधर्म व पृथ्वीदेवी से तीसरे नारायण स्वयंभू हुए ।
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किसी राजा द्वारा मधुको भेजी हुई भेंट स्वयंभू ने छीन ली, इससे परस्पर युद्ध हुआ। मधु मरकर नर्क गया | स्वयंभू ने भी राज्य कर मोह से भर ७ वां नर्क पाया । सुधर्म ने विमलनाथ भगवान से दीक्षा ले मोक्ष पद पाया ।
( ४ ) श्री अनन्तनाथ तीर्थङ्कर के समय काशी देश के राजा के यहाँ मधुसूदन नाम का चौथा प्रति नारायण हुआ। तब ही द्वारिका के राजा सोमप्रभ की रानी जयावती से सुप्रभ नाम के चौथे बलभद्र तथा रानी सीता से पुरुषोत्तम नाम के चौथे नारायण हुए।
मधुसूदनने पुरुषोत्तम से राज्य कर मांगा। न देनेपर युद्ध छिड़ गया । मधुसूदन मारे गये व सातवें नर्क गये। पुरुषोत्तमने मग्न हो राज्य किया और अन्तमें मर कर यह भी सातवें नर्क गया। सुप्रभ ने दीक्षा ले तपकर मोक्ष प्राप्त किया ।
(५) भगवान धर्मनाथ के समय में हस्तिनापुर में मधुकैटभ नामका पांचवां प्रतिनारायण हुआ । तबही खगपुर के राजा इक्ष्वाकुवंशी सिंहसेन की रानी विजयादेवी से ५ वें बलभद्र सुदर्शन व अविकादेवी से पूर्व नारायण पुरुपसिंह हुए ।
मधुकैटभने नारायण से कर माँगा, न देने पर परस्पर युद्ध हुधा । कैटभ मरकर नर्क गया। पुरुपसिंह भी राज्य कर