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थोड़े काल में ही मोक्ष प्राप्त कर लेंगे। नारायणादि का परिचय इस भांति है:
(१) श्रेयांसनाथ तीर्थङ्कर के समय में भरतके विजयार्ध पर्वत पर उत्तर श्रेणी में अलकापुरी के राजा मयूरग्रीव का पुत्र अश्वग्रीव नामका पहिला प्रतिनारायण हुआ । इसी समय मैं पोदनपुर के राजा प्रजापति के मृगावती रानी से पहला नारायण तृपृष्ठ (यह भरत पुत्र मारीच अर्थात् महावीर स्वामी का जीव है) और दूसरी रानी जयावती से विजय नाम के बलभद्र हुए ।
अश्वग्रीव और तृपृष्ठ में युद्ध का कारण यह हुआ कि अश्वग्रीव के पास किसी राजा द्वारा भेजी हुई भेट को तृपृष्ठ ने बलपूर्वक ले लिया था। युद्ध में प्रतिनारायण मर कर नर्क गया । नारायण पृथ्वी का स्वामी हुआ और राज्य करके अन्त में यह भी मोह से मर कर नर्क ही में गया। पीछे बलभद्र ने | सुवर्णकुम मुनिसे दीक्षा ले मोक्ष प्राप्त किया ।
( २ ) श्री वासुपूज्य के समय में भोगवर्धनपुर के राजा श्रीधर के पुत्र दूसरे प्रतिनारायण तारक हुए। उसी समय द्वारिकापुरी के राजा ब्रह्म की सुभद्रा रानी से दूसरे बलभद्र अचल और ऊषा रानी से दूसरे नारायण द्विपृष्ठ जम्मे । तारक ने दूत भेजकर नारायण को श्राज्ञानुवर्ती रहने को कहा, जिसे स्वीकार न करनेके कारण परस्पर युद्ध हुआ । तारक चक्रले मरा और सातवें नर्क गया । द्विपृष्ठ राजा हुआ और राज्य कर यह भी मरकर नर्क ही गया, फिर अचल ने साधु हो मोक्ष प्राप्त किया ।
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