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८०. भरतक्षेत्र में
प्रतिनारायण,
६ नारायण और ६ बलभद्रों का परिचय
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विदित हो कि हर एक अवसर्पिणी व उत्सर्पिणी कालमें ६३ महा पुरुष होते रहते हैं, अर्थात् २४ तीर्थंकर जो सब मोक्ष जाते हैं. १२ चक्री जिन में कोई मोक्ष कोई स्वर्ग और कोई नर्क जाते हैं और & प्रतिनारायण नारायण व बलभद्र जिन
से नारायण और है प्रतिनारायण विषय भोग में तन्मय होने के कारण नर्क जाते हैं, परन्तु वलभद्र साधु होकर कोई मोक्ष तथा कोई स्वर्ग जाते हैं ।
नारायण और बलभद्र एक ही पिता के पुत्र होते हैं । प्रतिनारायण नारायण से पहिले ही जन्म से भरत के दक्षिण तीन खण्डों को जीतकर अपने वश करते हैं और चक्ररत्नको पाकर अर्धचक्री हो राज्य करते हैं । कारणवश नारायण से इनकी शत्रुता हो जाती है, दोनों घोर युद्ध करते हैं, अन्त में नारायण उसी के चक्र रत्न को पाकर उसी से प्रतिनारायण का मस्तक छेदन कर स्वयं अर्धचक्री होजाते हैं और बड़े भाई बलभद्र के साथ राज्य करने लगते हैं ।
नारायण के पास निम्न ७ रत्न होते हैं धनुष, खड्ग, चक्र, शंख, दण्ड, गदा, शक्ति । बलभद्र के पास भी निम्न चार रत्न होते हैं -
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गदा, माल, हल, मूसल ।
ये सबही ६३ महापुरुष मोक्षके अधिकारी हैं, जो इस जन्म से मोक्ष न जावेंगे, वे आगामी किसी जन्म से बहुत