________________
( १८६ )
एक दिन दर्पण में मुख देखते हुए शिर में एक सफ़ेद बाल देखकर श्राप साधु होगए। पौने दो घड़ी के ही आत्मध्यान से आपको केवलज्ञान हो गया । श्रायु का अन्त होने पर मोक्ष पधारे | आपने कैलाश पर्वत पर भूत, भविष्य वर्तमान, तीनों चौबीसियों के ७२ मन्दिर बनवाए थे ।
(२) सगर - यह अजितनाथ के समय में हुए । इक्ष्वाकुवंशी, पिता समुद्रविजय, माता सुवाला थीं । सगर के ६०००० पुत्र थे । एक दफ़े इन पुत्रों ने सगर से कहा कि हमें कोई कठिन काम बताइए । तब सगर ने कैलाश के चारों तरफ खाई खोद कर गङ्गा नदी बहाने की श्राज्ञा दी । ये गये, खाई खोदी | तब सगर के पूर्व जन्म के मित्र मणिकेतु देव ने अपने वचन के अनुसार सगर को वैराग्य उत्पन्न कराने के लिये उन सर्ण कुमारों को अचेत करके सगर के पास श्राकर यह मिथ्या समाचार कहे कि आपके सब पुत्र मर गये । यह सुन कर सगर को वैराग्य हो गया और भगीरथ को राज्य दे श्राप साधु हो गए। पुत्र जब सचेन हुए और पिता का साधु होना सुना तो यह सुनते ही ये सब भी साधु हो गए ।
(३) मघवा - यह चक्रवर्ती सगरसे बहुत काल पीछे श्री धर्मनाथ पन्द्रहवें तीर्थंकर के मोक्ष जाने के बाद हुए । इक्ष्वाकुनंशीय राजा सुमित्र और सुभद्रा के पुत्र थे । अयोध्या राजधानी थी । बहुत कॉल राज्य कर प्रिय मित्र पुत्र को राज्य देकर, साधु हो तप कर मोक्ष पधारे ।
( ४ ) सनत्कुमार - चौथे चक्रवर्ती धर्मनाथजीके समय अयोध्या के इक्ष्वाकुवंशीय राजा अनन्तवीर्य और रानी सहदेवीके पुत्र थे । श्राप बड़े न्यायी सम्राट् थे तथा बड़े रूपवान थे।