________________
( १६० )
एक दिन आप अखाड़े में व्यायाम कर रहे थे। तब आप के रूप की प्रशंसा इन्द्र के मुखसे सुनकर एक देव देखने को आया और देखकर बहुत प्रसन्न हुआ। फिर राजसभा में प्रकट हो मिलने को गया । उस समय उतनी सुन्दरता न देख कर मस्तक हिलाया । सम्राट् ने मस्तक हिलाने का कारण पूछा । उत्तर में देव द्वारा अपने रूप की क्षणमात्र में ही कम हो जाने की बात सुन चक्री को संसार की श्रनित्यता देख कर वैराग्य हो गया । उसी समय पुत्र देवकुमार को राज्य दे वे शिवगुप्त मुनि से दीक्षा ले तप करके मोक्ष पधारे ।
तप के समय एक दफ़े कर्मके उदयसे कुष्टादि भयङ्कर रोग होगये। एक देव परीक्षार्थ वैद्य के रूप में आया और कहा कि श्राप औषधि लें । मुनिने उत्तर दिया कि श्रात्मा के जो जन्म मरणादि रोग हैं यदि उन्हें आप दूर कर सकते हों तो दूर करें, मैं आपकी दी हुई अन्य वस्तुएँ ले कर क्या करूँगा । देव ने मुनि के चारित्र में दृढता देखकर उनकी स्तुति की और अपने स्थान को वापिस चला गया ।
(५) १६वें तीर्थंकर श्री शान्तिनाथ - यह एक दिन दर्पण में अपने दो मुँह देख संसार को अनित्य विचार अपने नारायण पुत्र को राज्य दे साधु हो गये । श्राठ वर्ष पीछे ही केवली हो अन्त में मोक्ष पधारे।
(६) १७ वें तीर्थकर श्री कुंथुनाथ जी - एक दिन वन में क्रीड़ा करने गये थे। लौटते समय एक दिगम्बर साधु को देखकर वैरागी हो गये। १६ वर्ष तप करके केवलज्ञानी होकर मोक्ष पधारे।