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रात्रि को अन्त समय, स्वाति नक्षत्र में मोक्ष पधारे। आप ही के समय में बौद्धमत के स्थापक क्षत्री राजकुमार गौतम बुद्ध होगये हैं । जैन शास्त्रानुसार पहले यह जैन मुनि होगये थे । अज्ञानता से इन्होंने कुछ शङ्का उत्पन्न कर अपना भिन्नमत स्थापित किया । इनके साधुओं से जैन साधुनों का सदाही वादानुवाद हुआ करता था। बौद्ध साधु वत्र रखते हैं, आत्म को नित्य नहीं मानते हैं, जैनियों की तरह खान पान की शुद्धिपर ध्यान नहीं रखते । बुद्ध ने गृहस्थों को मांसाहार के निषेध की ऐसी कड़ी श्राज्ञा नहीं दी, जैसी जैन गृहस्थों को तीर्थङ्करो ने दी है।
७६. भरतक्षेत्रके वर्तमान प्रसिद्ध १२ चक्रवर्ती
इस भरतक्षेत्र के छः विभाग हैं। दक्षिण मध्य भाग को आर्यखण्ड व शेष ५ को म्लेच्छखण्ड कहते हैं । काल का परिवर्तन आर्यखण्ड में ही होता है, म्लेच्छखंडों में सदा दुखमा सुखमा काल की कभी उत्कृष्ट और कभी जघन्य रीति रहती है । जो इन छहों खराडों के स्वामी होते हैं, उनको चक्रवर्ती राजा कहते हैं। हर एक चक्रवर्ती में नीचे लिखी बातें होती हैं :
१. १४ रत्न -- ७ चेतन - जैसे सेनापति, गृहपति, शिल्पी, पुरोहित, पटरानी, हाथी, घोड़ा । ७ अचेतन सुदर्शनचक्र, छत्र, दण्ड, खड्ग, चूडामणि, धर्म, कांकिणी । इन हर एक के सेवक देव होते हैं।
२. नौ निधिये या भण्डार --काल, महाकाल, नैसर्य्य, पांडुक, पद्म माणव, पिंगल, शंख, सर्वरत्न जो क्रमसे
पुस्तक,
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