________________
( १६६ )
७३. जैनियों में स्त्रियों का धर्म और उनकी प्रतिष्ठा
जैनियों में स्त्रियोंके लिये वे ही धर्म क्रियाएँ हैं जो पुरुषों के लिये हैं। श्रावक धर्म की ग्यारह प्रतिमाएँ वे पाल सकती हैं। वे नग्न नही हो सकतीं । इसीलिये साधु पद नहीं धारण कर सकतीं और न उसी जन्म से निर्वाण लाभ कर सकती हैं। उनका उत्कृष्ट श्राचरण आर्थिका का होता है जो एक सफ़ेद सारी (धोती) रख सकती हैं ।
ऐलकके समान मोर पिच्छिका व कमण्डल रखती व भिक्षावृत्ति से श्रावके यहाँ बैठकर हाथ में भोजन करती, व केशोको लोच करती है । उनको श्रीजिनेन्द्र की पूजा अभिषेक व मुनिदान का निषेध नहीं है।
रजोधर्म में चार दिन तक, प्रसूतिमें ४० दिन तक व पांच मास की गर्भावस्था में पूजा, अभिषेक व मुनिदान स्वयं नही कर सकती है।
स्त्रियों की प्रतिष्ठा यहां तक है कि राजा लोग उन को अपने सिंहासन का श्राधा श्रासन देते थे । वे पति के न होने पर कुल सम्पत्ति की स्वामिनी हो सकतीं व पुत्र गोद ले सकती हैं।
७४. भरतक्षेत्र में प्रसिद्ध चौबीस जैन तीर्थंकर
भरतक्षेत्र जिसके भीतर हम लोग रहते हैं छः खण्डों
* - पं० माणिकचन्द्रजी की सम्मतिमें स्त्रियों को अभिषेक करने का अधिकार नहीं, क्योंकि उनके मलस्राव विशेष है ।