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२. व्रत लाभ किया-शिष्य धर्म को सुनकर उस पर श्रद्धा करता हुआ स्थूल रूपले पाँच अणुव्रत ग्रहण करता और मदिरा मधु, मांस, तीन मकार का त्याग करता है।
३. स्थानलाम-शिष्य को एक उपचास व पूजा करा कर उसको पवित्र करे च णमोकार मन्त्र का उपदेश देवे ।
४. गण गृह-शिष्यके घरमें जो अन्य देवों की स्थापना हो तो उनका विसर्जन करे।
५. पजाराध्य भगवान की पूजा करे, द्वादशांग जिनवाणी सुने व धारे।
६. पुण्य यज्ञ किया-१४ पूर्व शिष्य सुने।
७. दृढ़ चर्या-जैन शास्त्रों को जान कर अन्य शास्त्रों को जाने।
८. उपयोगिता-हर अष्टमी चौदस को उपवास करे, ध्यान करे।
8. उपनीति-इस को यज्ञोपवीत ग्रहण करावे ।
१०. व्रतचयों-जनेऊ लेकर कुछ काल ब्रह्मचर्य पाल गुरु से उपासकाभ्ययन या श्रावकाचार पढ़े।
११. व्रतावरण-गृहस्थाचार्य के निकट ब्रह्मचारी का भेष उतारे।
१२, विवाहजो पहिली विवाहिता स्त्री हो तो श्राविका बनावे | यदि न हो तो वर्णलाभक्रिया करके विवाह करे।
१३. वर्णलाभ-गृहस्थाचार्य इसकी योग्यता देखकर