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________________ ( १६२ ) । [ ४२ ] यौवराज्य - तीर्थङ्कर का युवराज होना [ ४३ ] स्वराज्य - नीर्थङ्कर का स्वतन्त्र राज्य करना । [ ४४ ] चकूलाभ - चक्रवर्ती पद के लिए नौ निधि व १४ रत्नों का पाना । छः खण्ड पृथ्वी जीतने को ४६ ] चक्राभिषेक - लौटने पर चक्रवर्तीका अभिषेक [ ४७ ] साम्राज्य अपनी श्राशानुसार राजाओं को [ ४५ ] दिशांजय निकलना | चलाना । - [ ४८ ] निष्कान्ति-पुत्र को राज्य दे दीक्षा लेना । [ ४६ ] योग संग्रह - केवलज्ञान प्राप्त करना । [५० ] आन्त्य - समवशरण की रचना होनी । ५१] विहार-- धर्मोपदेश देनेके लिये विहार करना । [ ५२] योग त्याग - योग को रोककर प्रयोगी होना । [ ५३ ] अग्र निवृत्ति : - मोक्षपद पाना । इन क्रियाओं में संस्कार प्राप्त बालक तीर्थकर हो कर मोक्ष पद प्राप्त कर सकता है। जो जन्म से जैन नहीं है और जैनधर्म स्वीकार करे उस की दीक्षान्वय क्रियायें निम्न ४८ हैं । १. अवतार किया - कोई अजैन किसी जैन आचार्य या गृहस्थाचार्य के पास जाकर प्रार्थना करे कि मुझे जैनधर्म का स्वरूप कहिए, तब गुरु उसे समझावै ।
SR No.010045
Book TitleJain Dharm Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherParishad Publishing House Bijnaur
Publication Year1929
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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