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________________ (१५) [१] गर्भाधान क्रिया-पत्नी रजस्वला हो कर पांचवें या छटे दिन पति सहित देव पूजादि करे, फिर रात्रि को सहवास करे। [२] प्रीति क्रिया-गर्भ से तीसरे महीने पूजा व उत्सव करना। [३] सुप्रीति क्रिया-गर्भ से पांचवे मासमें पूजा व उत्सव करना। [४] धृति क्रिया-गर्भ वृद्धि के लिये ७ वे मास में पूजा व उत्सव करना। [५मोद क्रिया-नौवे मासमें पूजा व उत्सव करके गर्मिणी के शिर पर मंत्र पूर्वक वीजाक्षर लिखना व रक्षासूत्र बांधना। [६] मियोद्भव क्रिया-जन्म होने पर पूजा व उत्सव करना। [७] नाम कर्म क्रिया-जन्म से १२ वें दिन पूजा कराके गृहस्थाचार्य द्वारा नाम रखवाना व उत्लव करना। [८] बहिर्यान क्रिया-दूसरे, तीसरे या चौथे मास पूजा कराके प्रसूतिगृह से वालक सहित मा का बाहर आना। निषद्या क्रिया- बालक को बिठाने की क्रिया पूजा सहित करना। [१०] अन्न प्राशन किया-७ या ८ या : मास का बालक हो तब उसे पूजा व उत्सव पूर्वक अन्न खिलाना शुरू करना।
SR No.010045
Book TitleJain Dharm Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherParishad Publishing House Bijnaur
Publication Year1929
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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