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(१५६) [११] व्युष्टि क्रिया-एक वर्ष होने पर पूजा सहित वर्ष गांठ करनी।
[१२] केशवाय किया-जव वालक २, ३ या ४ वर्ष का हो जावे तध पूजा करके सर्व केशो का मुन्डन कराके चोटी रखना।
[१३] लिपि संख्यान किया-जव पाँच वर्ष का बालक होजावे तो पूजा के साथ उपाध्याय के पास अक्षरारंभ कराना।
[१४] उपनीति किया-आठवे वर्ष में बालक को पूजा व होम सहित तथा योग्य नियम कराकर रत्नत्रयसूचक जनेऊ देना।
[१५] व्रतचर्या किया-ब्रह्मचर्य पालते हुए गुरु के पास विद्या का अभ्यास करना । श्रावक के पांच व्रतों का अभ्यास करना।
[१६] व्रतावरण किया-विद्या पढ के यदि वैराग्य हो गया हो तो मुनि दीक्षा ले, नही तो ब्रह्मचर्य छात्र का भेष छोड अव घर में रहकर योग्य आजीविकादि करे व धर्म पाले।
[१७] विवाह किया-योग्य कुल व वय की कन्या के साथ पूजा उत्सव सहित लग्न करना । सात दिन तक पति पत्नी ब्रह्मचर्य से रहे, फिर मंदिरों के दर्शन कर कंकण डोरा खोलें और संतान के लिये सहवास करें।
इन १७ संस्कारो में जो पूजा की जाती है, उसकी विधि मन्त्र सहित संक्षेप में गृहस्थ धर्म पुस्तक में दी हुई है।