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( १५४) पूर्वक तीन दफे सामायिक करनी होती है । सवेरे, दोपहर
और साँझ । कम से कम समय ४८ मिनट को लगाना चाहिये। किसी विशेष अवसर पर कुछ कम भी लग सकता है । सामायिक ५ दोष रहित करना चाहिये। (४) प्रोषधोपवास प्रतिमा
इसमें एक मासमें दो अष्टमी दो चौदस चार दफ़े उपवास करना और उसके पांच दोष टालना । इसके दो तरह के भेद है:
प्रथम यह है कि पहले व तीसरे दिन एक दफे भोजन, बीच में १६ पहर का उपवास, मध्यम पहले दिन की संध्या से तीसरे दिन प्रातःकाल तक १२ पहर, जघन्य भोजन पान इनने काल छोड़ते हुए व्यापार व प्रारम्भ का त्याग केवन अष्टमी तथा चौदस को पाठ पहर ही करना।
दूसरा भेद यह है कि पहले और तीसरे दिन एक भुक्त करना तथा १६ पहर धर्म ध्यान करना। मध्यम यह है कि इस मध्य में केवल जल लेना । जघन्य यह है कि जल के सिवाय अष्टमी या चौदस को एक भुक्क भी करना । जैली शक्ति हो उसके अनुसार उपवास करना चाहिये । उपवास का दिन सामायिक, स्वाध्याय, पूजा आदि में बिताना चाहिये। (५) सचित्तत्याग प्रतिमा
यानी बनस्पति आदि कच्ची अर्थात् एकेन्द्रिय जीव सहित दशामें न लेना । जिह्वा का स्वाद जीतने को गर्म या प्राशुक पानी पीना व धी हुई या छिन्न भिन्न की हुई या लोण आदि से मिली हुई तरकारी खाना । सचित्त के खाने मात्रका