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देवगत्यानुपूर्वी, रूप, रस, गंध, स्पर्श, अगुरुलघु, उपघात, परघात, उल्लास, त्रस, वादर, पर्याप्त, प्रत्येक, स्थिर, शुभ, सुभग, सुस्वर, श्रदेय |
उदय-७२ में से हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्ला घटाने पर ६६ का
सत्ता - आठवें के अनुसार १४२, १३६ या १३८ की ।
में
१०. सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थान
बंध -- १७ का २२ में से संज्वलन क्रोधादि ४ व पुरुष वेद घटाने पर ।
उदय - ६० का । ६६ में से संज्वलन, कषाय लोभ सिवाय ३ व स्त्री, पुरुष, नपुंसक वेद, यह ६ घटाने पर ।
सत्ता-उपशम श्रेणी में १४२ की व क्षायिक सम्यग्दृष्टि के १३६ की तथा क्षपक श्रेणी में १०२ की । १३८ में से ३६ घटाने पर। वे ३६ ये हैं :
निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला, स्त्यानगृद्धि, अप्रत्याख्यानावरण कषाय ४, प्रत्याख्यानावरण कषाय ४, संज्वलन क्रोध, मान, माया ३, नो कषाय ६, नरकगति, नरकगत्यानुपूर्वी, तिर्यग्गति, तिर्यग्गत्यानुपूर्वी, उद्योत, श्रातप, एकेन्द्रिय से चौइद्रिय ४, साधारण, सूक्ष्म, स्थावर ।
११. उपशांतमो गुणस्थान में
बंध- १ साता वेदनीय का । १७ में से १६ घटाने पर । वे १६ वे हैं :