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________________ ( १३३) ज्ञानावरण ५, दर्शनावरण ४, अन्तराय ५, उच्च गोत्र, यश उदय- का । ६० में से संज्वलन लोभ घटाने पर । सत्ता-दशव की तरह १४२ की व क्षायिकके १३६ को। १२, भीगयोह गुणस्थान में बंध-२१ वे की तरह १ साना वेदनीय का ही। उदय-५७ का । ५६ में से वज्र नाराच व नाराच घटाकर । सत्ता-१० की क्षपक श्रेणी में १०२ में मे संज्वलन लोभ घटाकर १०१ की। १३. सयोग केवली गणस्थान में बंध-एक साता का। उदय-५७ में से १६ घटाने पर ४१ का व तीर्थडर के नीर्थङ्कर प्रकृति सहित ४२ का । वे १६ ये हैं ज्ञानावरण ५, दर्शनावरण ४,निद्रा, प्रचला,अंतराय५ । सत्ता-५ की । १०१ में से भानावरण ५, दर्शनावरण ४, निद्रा, प्रत्रला, अन्तराय ५ ऐसी १६ घटाने पर। १४, अयोग केवली गणस्यान में वंध-० कोई नहीं। उदय-१२ का । ४२ में से ३० घटाने पर । वे ३०
SR No.010045
Book TitleJain Dharm Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherParishad Publishing House Bijnaur
Publication Year1929
Total Pages279
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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